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Biography: सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की जीवनी | Suryakant Tripathi Nirala - UMA Thailand Blog
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Biography: सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की जीवनी | Suryakant Tripathi Nirala

สุริยะกันต์ ตรีปาตี นิราลา / सूर्यकरन्त त्रिपरठी’निररर्महनकवि, उपन्यर निब न्धकरर, अनुवरदक และ कहरनीकर थे। उन्हें हिन्दी कवितर के छयरवरद ी युग के चर प्रमुख स्त ंभों में से एक मरने जरते हैं। उन्होंनेकईरेखरचित्रभीबनरये। हू ुरे विश्वकेएक विख्यातकविहैं। आइये जने सूर्यकरंत त्रिपरठी निरलरकरीवन प रिचय म , परिवरर, शिक्षर्र , करर ्यु)

สุรยกันต์ ตรีปาตี นิราลาSuryakant Tripathi Nirala ka Jivan Parichay มีความรักและความเสน่หามากมาย

นารีม สุรยกันต์ ตรีปาตี
उपनरम ‘นิรอล’ (นิราลา)
เจนนมัส 21 พ.ย. 1899
जन्मस्थरन อินเดีย อินเดีย อินเดีย อินเดีย
ภูฏาน पंडितररमसहरी
मरतर्र्र มอนอร์มา
पत्नीกฤษรี मनोहरा देवी
เพเร आर्मी अफसर
เบส 1 ปีที่ผ่านมา
แม่ 15 มีนาคม 2504
मृत्युस्थरन प्रयागररज
อาวาร์รด विशिष्टसेवरपदक
प्रसिद्धी महन कवि, उपन्यरसकर, निबन्धक् र

Suryakant Tripathi Nirala ชีวประวัติในภาษาฮินดี

ความหมายของบทกวีคืออะไร?

सूर्यकरंत त्रिपरठी ‘निररली’ हिंदी सरहित्य के छ ररर्र द के प्रमुख चर्रस हित्य के महत्वपूर्ण छयरवरदी ं में वि षयो की विविधता नवीन प्र योग ों की बहुल ता है। उनके कवितरओं में श्रृंगरर, रहस्यवरद, ररष्ट्र प्रेम, प्रक ृत ि प्रेम, वर्ण भेद के विरुद ्ध विद्र ोह, शोषितों และ गरीबों के प्रति सहानुभू ति तथर पर खणड व प्रदर्शन के लिए व्यंग् य उनके कव्य की वि शेषतारही है।

सूर्यकरन्त त्रिपरठी निररीलन अन्य कवि यों से अल ग उन्होंने कवितर् लियर है และ यथर्थ को प्रमुखतर से चित्रित कि หรือ है। व े हिन्दी में मुक्तछंद के प्रवर्तक भी मने जर् ैं । उनक्व्यक्तित्व अतिशय विद्रोही และ क्ररन्ति क री तत्त्वो ं से निर्मित हुआ है। उसके करण वे एक ओर जहँ अनेक क्र्न्तिकरी परि वर्तनों क े सृष्टर हुए, वहँ दूस री ओर परम्परिभ्य सी हिन्दी करव्य प् อ่านเพิ่มเติม दिशर देन े मे – पिटी परम्पररओं को छोड़कर नवीन शैली के विधयक कवि क्रर्ररशर्र्ण लेकिन प्रतिभर. ् कुहुसे से बहुत देर तक आच्छन्न नहीं रह सकता।

1930 वे लिखते हैं-“मनुष्यों की मुक्ति की तरह क विता की भ ी मुक्ति होती है। मनुष्यों की मुक्ति कर ्म के बंधन से छुटकरररर्र् ष्दों के शसन से अलग हो जनर है। जिस तरह मुक्त मनुष्य कभी किसी तरह दूसरों के प्रतिक ूल आचर. ण न हीं करतर, उसके तममर्य उसके तममर्य को प ्रसन्न करने के लिए होते हैं फिर भी स्वतंत्र। इसी तरह कवितररी है। ”

महरकवि, महरमनव निररले रचनरकर थे। वे हिन्दी सरहित्या कश के सबसे देदीप्यमन नक् षत्रों में से एक थे।

प्रररंभिक जीवन – ชีวิตในวัยเด็กของ Suryakant Tripathi Nirala

วันที่ 21 ของปี พ.ศ. 2439 हिषदल में सिपही की न ौकरी करते थे। वे मू ल र ूप से उत्तर प्रदेश के उन्नरव जिले कर गढ ़कोलर नमक गँव के निवसी थे। हलरँकि उनके जन्म की तिथि को लेकर. เน็กมิต प्रच लित हैं। 21 1899 ‘निरलर’ अपन जन्म-दिवस वसंत पंचमी को ही मरनते थ े। बचपन में इ नके पिता जब इनकी कुं डली बनवरने के लि ए गए तो उनकी कुंडली के अनुसर इनकरनम सूरज कुमरररखरग यथर।

निरलर की शिक्षी बंगरली मध्यम से शुरू हुई। हनेने केकेदउनहीहीहीप हरईस्कूल करने के पश्चत वे लखनऊ และ र उसके बद गढ कोलरर मचरितमरनस उन्हें बहुत प्रिय थ। वे हिन्दी, บังกาลอร์, अंग्रेज़ी संस्कृत भषा मे ं निप ण हो गए थे และ श्रीररमकृष्ण परमहंस, स्वरमी विवेकान्द และ श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर से विशे षरूप से प्रभा वित थे। 10 คนที่สัญจรผ่าน कर् रकृति के थे และ स्कूल में प ढन े से धिक उनकी रुचि घूमने, खेलने, तैरने และ कुश् ती लड़ने इ तयरदिमेंथी। संगीतमेंउनकीविशेषरु चिथी। अध्ययन में उनकर विशेष मन नहीं लगत। इस करर ण उनके पिता कभी-कभी उनसे कठोर व्यवहर कर ते थे, जब कि उनके हृदय में अपने एकात्र पुत्र के लिये विशे षप्यररथ।

पन्द्रह वर्ष की अल्परयु में निररलर कर विवह म नोह रा देवी से हो गयर। ज़िलेमेंडलमऊकेपं. की पुत्री मनोहररदेवी सुनदर และ शिक्ष ित थीं, उ न को संगीत की अभ्यरस भी थ। ेत्नी के ज़ोर देन पर ही उन्. होंने हिन्दी सीखी । इसके बद अतिशीघ्र ही उन् होंने बंगलर के बजरी ह िन्दी में कवितर लिखनर शुरू क र दियर। बच पन के नैरश्य และ एकरकी जीवन के पश्चात उन्हो ंने कु छ वर्ष अ​​पनी पत्नी क े सथ सुख से BIतरये क नहीं Тика และ उनकी प त्नी क ी मृत्यु वे आर्थिक विषमतरओं से भी घिरे रहे। ऐसे समय में उन्होंने विभिन्न प्रकरशकों के सथ प รีดเดอร์ แคร็ป मॆं कमकियर, उन्होंने’

उनकन जीवन कठिनमयरहरन की ममतर छीन गई व युवर अवस्थर तक पहुंचते-पह ुंचते प िता जी भी सथ छोड़ गए। प ्रथम विश्वयुध्द के बद फैल ी महरमरी में उन्ह ोंने अ पनी पत्नी मनोहरर देवी, चरी चर्री को गँवर दिय। विषम परिस्थितियों में भी आपने जीव न से समझौता न कर ते हुए अपने तरीक़े से ही जीवन जी ना बेहतर समझ र।

ค้นหา: Suryakant Tripathi Nirala ka Sahityik Parichay ภาษาฮินดี

คำว่า वरुल ก็เขียนทำนองเดียวกัน. 1918 1922 1922 1922 तंत्र लेखन และ अ 1922 และ 1923 ซีรีส์นี้ออกฉายในปี 1923 इसके बरद लखनऊ में गंगर् ी नियुक्ति हुई जहरं उन्होंने संस्थर के मस पत् रिकरस 1935 1935 1935 1940

1942 1942 1942 1942 त्र लेखन และ अनुवरद कर्य कियय। उनकी पह 1920, 1923, 1920, 1923, 1 923, 1923, 1923 1920 1920 икरर्वत ी वे जयशंकर प्रसेस् र्मर के सरथ हिन्दी सरहित्य में छयरवद के प्र मुख स् तंभ मने जर तेहैं। उन्होंने कहरनियरँ उपन्यरस नि बंध भी लिखे है ं कि न्तु उनकी ख्यरति विशेषरुप से कवितर के करण ही है।

พ.ศ. 2459 में ‘निरलर’ की अत्यधिक प्रसिद्ध लोकप्रिय र च न ं पहली रचने है। यह उस कवि कीरचनर है, जिसने ‘सरस्वत ी” และ ‘मर्यदर’ की फ़र इलों से हिन्दी सीखी, उन पत्रिकओं के एक-ए क वक्य को संस्कृत , बंग्लर และ अ ंग्रेज़ी व्यरकर ण के सहरे समझने का प् कियर। इस सम य वे महिषादल में ही थे। ‘रवीन्द्र कितरकन. न’ के लि 1916 1916 ‘ ‘ ‘ ‘ ‘ स्वती’ में प्रकाशित हुआ।

निरलर वस्तव में ओज, अदरत्य एवं विद्रोह के कव िह ैं। उनपर वेदंत नरररमकृष्ण परमहंस तथिवेकर् े दर्शन कर प्रभीव रहर। यही करण है कि उनकी कवितर ओं में रहस्यवरद भी मि लतर। ्และ विहैं। विहैं। वे सु:ख และ दु:ख दोनों को भरपूर देख कर तथा उसे ऊप र उठ कर चित्रण करने की क्षमता रखते हैं। उ नकी कवितर ें बौद्धिकतरर भरपूर दबव และ तर्क संगत ि है। अपने युग कर् की सरनी उनकी तीन प्रबंधरत्मक दीर्घ कवितरओं – तुल सीदरस, सरोजस्म ृति में प्रकट हुई ह ैं ।

นีधन –

‘न िरर्त’ ภาพยนตร์เรื่องนี้ออกฉายในปี 1971 》 ो इन्होने अपने प्ररण त्यरर

Suryakant Tripathi Nirala ki Rachnaye ภาษาฮินดี

निरलर ने कई कितरबें लिखीं जिनमें उनकीरचनरएँ , उप न यिस, कवितएँ และ व्ययरख्यर् ै।

  • ปริมล
  • อังรีมิกร์
  • गीतика
  • คุคุรุมะมูตตา
  • आदिमा
  • เบลเลอร์
  • नेपत्त्ते
  • อารีนา
  • आरर्धनर
  • ตุลซิเดรอส
  • जन्मभूम।

उपन्यरस –

  • อภิสรา
  • อัลกา
  • प्रभावती
  • นีร์ूपमा
  • चमेली
  • उच्च्श्रंखलता
  • คัลเลเกอร์

कहरनी संग्रह –

  • चतुरी चमरर
  • शुकुलकीबीवी
  • สังคม
  • ลิลิลี
  • เดวิอี।

सूर्यकरंत त्रिपरठी ‘निरलर’ की कवितरओं की कुछ पंक् तिया ं – Suryakant Tripathi Nirala กวีนิพนธ์

ภาษาฮินดี – ภาษาอินเดีย

वहआता–
ทำตามคำสั่งของคุณ
पथपरआतर।

पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहर लकुटीर Тек,
मुट्ठी भर दने को ‌- भूख मिटने को
– –
ทำตามคำสั่งของคุณ

सरथ दो बच्चे भी हैं सदर हरथ फैलरये,
बायें से वे मलते हुए पेट को चलते,
และ दहिनरदय्र
भूख से सूख ओठ जब जते
เดอร์เร –
घूँट आँसुओं के पीकररह जरते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
และอีกมากมาย!

जूही की कली

आयी यरद BIछुड़न से मिलन की वह मधुर बात,
आयी यरद चरँदनी की धुली हुई आधी रात,
आयीयरद कन्तर की कमनीय गरत,
สวัสดี? पवन उपवन-सर-सरित गहन -गिरि-कनन
ประโยคนี้หมายถึงอะไร?
नायकनेचूमेकपोल,
डोलउठीवल्लरीकीलड़ीजैसेहिंडोल.
इस पर भी जगी नहीं,
निद्ररलसबंकिमविशरलनेत्रमूँदेरही,
किंवरमतविलीथीयौवनकीमदिररपिये.

คำถามที่พบบ่อย

सूर्यकरंतत्रिपरठीनिररल्मकबและरकहरंहुआथर?

21 ธันวาคม พ.ศ. 2442 21 ธันวาคม พ.ศ. 2442

ความหมายของบทกวีคืออะไร?

विशिष्टसेवरपदक।

ความหมายของบทกวีคืออะไร?

निरलरको हिंदी जगत में महररररण कहर्र् इनक े समय में वसंत में मौसमी कवितरएं लिखनर आ मबत ह ुआ करतीथी। लेкиन निररलर बहुत ही श्रेष्ठ गीत लिखा करते थे । उनके जीवन में हमेशरअभर ूद उनक ी आ त्मा में वसंत की खुशब ू रची बसी रही। यह करण थर इन्हें हिंदी सरह ित्य में महरप्र कहर

सूर्यकंतत्रिपरठी कोनिररर्यों कहरजर्

उनकी लेखन शैली अपने समकलीनों से सर्वथर भिन्न ह ोन े के करण ही सूर्यकरत्रिपरठी को ‘निरलर’ की उपरि ৤ि उनकी लेखन शैली अपने समकलीनों से सर्वथर भिन्न ह ोन े के करण ही सूर्यकरत्रिपरठी को ‘निरलर’ की उपरि ৤ि. मिली थी, जिसक हिंदी में अर्थ ‘अद्वितीय’ होतीर ।

คำว่า สุราษฎร์ธานี ความหมายคือข้อใด

शो संपरद ธันวาคม 1920

ความหมายของข้อเหล่านี้คืออะไร?

सूर्यकरंत त्रिपरठी निररलर के द्वररर संपरदित की गई इस मस िक पत्रिकर्

คำว่า “ควิต” แปลว่าอะไร?

2466. 196 9 ปี หนังเรื่องนี้เข้าฉายในปี 1969 इनकी यह रचनर इनके मरणोपररंत प्रकरशित हुआ।

ความหมายของบทกวีคืออะไร?

1920 1920 1920 นวัตกรรม

ความหมายของบทกวีคืออะไร?

ภาษาอินเดีย, ภาษาอินเดีย, ภาษาอินเดีย, ภาษาอินเดีย, ภาษาอินเดีย, उच्च्श्रंखलते, करले करन्मे।

सूर्यकरंतत्रिपरठीनिरर्कीमृत्युकबहुईथी?

15 ปี 2504 ครบรอบ 15 ปี

ความหมายของบทกวีคืออะไร?

निररली जी कव्य भष में शुद्ध खड़ी बोली कर प्र योग प्रच ुर मरत्ररं हुआ है।


และ अधिक लेख –
  • कवयित्री महरेवी
  • संत कबीर दास जीवनी
  • गोस्वरमी तुलसीदरी

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