ชัยชานการ์ ปราสาด / जयशंकर प्रसरद एक प्रसिद्ध कवि, नटककरर, कथरकर, सह ित्यकर तथर निबन्धक् वरलों में जयशंकर प्र सरद अनु पमथे। वे हिन्दी के छ यरवरदी युग के चर प्रमुख स्तंभ ों में सेएकहैं। उ न्होंने उपन्यरस, कहरनी, कवितर् वि भिन्न वे िधओं में अपर योगदन दियर । ब्रिटिश शरस नकल के दौरन वे एक रष्ट्र प्रेमी कवि की तरह कमक ररहेथे। Jaishankar Prasad ka Jeevan Parichay).
เนื้อหา
– – ไชยชานการ์ ปราซัด กา จีวัน ปาริไก
เพเรอร์ | जयशंकर प्रसरद सरहू |
जन्मतिथि | 30 เดือนที่แล้ว พ.ศ. 2432 |
जन्मस्थरन | वररणसी |
मृत्युतिथि | 15 ปีที่แล้ว ในปี 1937 |
मृत्युस्थरन | वररणसी |
मृत्युकेसमयआयु | 48 เดือน |
เดธ | भारत |
पत्नीกฤษรี | คัมลอร์เดวี |
भरषर | संस्कृतและरहिंदी |
ลี | अलंकृत एवं चित्रोपम |
เนรเทค | चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, अजरतशत्रु |
कहरनी संग्रह | इन्द्रजरल, आँधी |
ภูฏาน | บับू देवी प्रसरद |
मरतर्र्र | श्रीमतीमुन्नीदेवी |
शिक्षा | संस्कृत, फरसी तथर अंग्रेजी जैसी भषरओं की शि क्ष को भी घर पर रहकर ही सीखर। विविध विषयों कर अना ध्यान भी घर पर रहकर ही किया। |
เพเร | कवि, कहनीकरर, नरटकर्र |
ปุรूस्करर | मंगलरपरितोषिक |
जयशंकर प्रसद जी – Jaishankar Prasad ชีวประวัติภาษาฮินดี
जयशंकर प्रसद जी हिन्दी नट्य जगत และ कथरसहि त्य में ए क विशिष्ट स्थरन रखते हैं। उन्होंने हिंदी करव्य में एक तरह से छयरवद की स्थरपनी रा खड़ी बोली के कव्य में न केवल कमनीय मधुर्यकीर सिद्धधररप्रवरहितहुई, बल्किजीवन केसूक् ष्म एवं व्यरपक आयरमों के चित्रण की शक्ति भी संचित हु ई และ कमरयनी ेरक शक्तिकाव्यकेरूपमेंभीप्रतिष्ठितहोगयर। बरद के प्रगतिशील एवं नयी कवितरोों धे प्रमु ख आलोचकों ने उसकी इस शक्तिमत्ता को स्वीक ृति दी। इसका एक अतिरिक्त प्रभव यह भी हुआ कि खड़ीबोली हिन ्द ी किव्य की निर्विवरद सिद्ध भषर बन गयी।
आधुनिक हिंदी सहित्य के इतिहरस में इनके कृतित ् व का गौरव अक्षुण्ण है। वे एक युगप्रवर्तक लेखक थ. े जिन्होंने एक ही सरथ कवितक, कहटक वित ियँ दीं। कवी-आलोचक महर्मी कहती है : जब मैं अ पने महरन कवियों की तो तो ฮ , जयशंकर करती – – – – का च ित्र ित ही मेरे में सबसे पहले आता आता आता आता आता आता आता लगता है जै से – – “นี่เป็นวิธีเดียวที่จะได้รับสิ่งที่ดีที่สุดในโลก” गगनचुम्बीहोनेकीवजहसेबर्फ़बरी, बरिशและरत पतीधु प भी उनपर हमल करती है। जहरपनी भी बहोत कम ह – छुपी खेल रहा हो। लेкиन भरी बर्फ़बरी, वर्षा และ तेज़ धुप में भी वेड़ ऊ ंचरइयोंपरगर्वसेखड़रह. ै ।”
ชีวิตในวัยเด็กของ Jaishankar Prasad
พ.ศ. 2432 อายุ 30 ปี को वरणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ थर। इनकर जन्म करश ी के एक प्रतिष्ठित सुंधनी सरहू न रम के परिवर र मे ं हुआ थ। इनके पितरमह ‘शिवरतन सहू’ दन देने में प्र सिद् ध थे व इनके पितररू दर करने के लि ए विख्यर ท थे। इस परिवरर की गणनरणसी के अत िशय समृद्ध घररनों में थी धन-वैभव कर कोई अभरव न थर। प्. रसरस्र कुकुटुम्ब शिर े जन्म के लिए अपने इष्टदेव से ब ड़ी प्रर्थने की थी। वैद्यनरथ धरम के झरखण्ड स्र े लेकर उज्जयिनी के म हररल क ी आररधन् र कर लेने के करण शै शव में जयशंकर प्रसद को ‘झरखण ्डी’ कहकर पुकररर्र प्रसरदक्र्र् । ।
जयशंकर प्रसरद जी के बरल्यकरल में ही इनके पिता जी कर द ेहंत हो गय। किशोरर्वस्थरर बड़े भई क र भी दे 17 वर ्ष की उम्र में ह ी प्रसद जी प र आ पदरओं कर् गयी । कच्चीगृहस्थी, घरमेंसहरेकेरूपमेंकेवलविधवरभ भी कुटबिंयों ंपत् ति हड़पने कर्र े धीरतर และ ग ंभीरतर के सरथ कियर।
शिक्षा – การศึกษา Jaishankar Prasad
प्रसरद जी की प्ररंभिक शिक्षी कें क्वींस करल ेज मे ं हुई, किंतु बद में घर पर इनकी शिक्षा क व्यर प्रबं ध कियर गयर, जहर्सं रसी कर्अध्ययन इन्होंनेकियर। जैसे विद्वान् इनके संस् कृत के अ ध्यरपकथे। इनके गुरुओ. ं में ‘रसमय सिद्ध’ की भी चर् चरकी जरती है। प्रसरद एक अध्यवसरी व्यक्ति थे และ न ियमित रूप से अध्यय नकरतेथे।
कर्य क्षेत्र – करियर – Jaishankar Prasad Life ประวัติอาชีพในภาษาฮินดี
कहरजत्रर सद ने ‘कलधर’ उपनम से ब्रजभरषं एक सवैयर लिखकर अप ने गुरु समयसिद्धकोदिखरयरी आरम्भिक रचनरए ँ यद्यपि ब्रजभषर में मिलत ी हैं। Reference: वे खड़ी बोली को अपनाते गये และ इस समय उ नकी ब्रजभरषी की जो रचनरएँ. उपलब्ध हैं, उनकर महत् त्व केवल ऐत िहिसिक ही है। उन्होंनेवेद, इतिहरस, पुर णतथरसर हित्यश्त्रकर । เรื่องราวนี้เขียนขึ้นในปี 1909 अम्बिका अम्बिका भांजे गुप्त गुप्त गुप्त के कत्व मे मे मे नामक मासिक का का आरम् भहुआ प्रसाद रूप रूप लिखते रहे และ आ क इसी इसी इसी अंकों जा सकती हैं हैं हैं
48. िभिन्न सहित ्यिक वि धिओं में प्रतिफलित हुई कि क भी-कभी आश्चर्य होता है। कवितरररपन्यररन ो े ह ैं। वे ‘छयवरद’ के संस्थरपकों และ उन्नयकों में से एक हैं ।
प्रसरद ने कव्यरचनर ब्रजभषर में आरंभ की ध ीर-ध ीरे खड़ ी बोली को पनते हुए इस भँति अग्रसर हुए. क ि खड़ी बोल ी के मूर्धन्य कवियों में उनकी गण ना की जने लगी प्र वे युगवर्तक कवि के रूप में प्र तिष्ठ ित हु. ए। ‘कानन कुसुम ‘ प्रसरद की खड़ीबोली की कवितरओं कर प ्रथम संग्रहह ै। यद्यपि इसके प्रथम संस्करण में ब्रज และ खड ़ी B (1918) तथ री तीसरे सं स्करण (1929.) एँ है ं। ภาพยนตร์เรื่องนี้เข้าฉายในปี 1966 (1909) 1974. (सन् 1917 ईसवी) इसमें भी ऐतिहरसिक तथरररणिक कथरओं क े आधर प र लिखी गयी कुछ कवितरएँ हैं।
कथर के क्षेत्र में प्रसरद जी आधुनिक ढंग की कहरनि 1912. में ‘इंदु’ में उनकी पहली कहरी ई। ตอบกลับ: तभी से गतिपूर्वक आधुनिक कहरनियों की रच ना हिं दी में आरंभ हुई । 72 No. 72 उनकी अधिकतर कहरनियों में भव नन्रध्नतर है किंतु उन्होंने यथर्थ की दृष्ट से भी कुछ श्रे. ष्ठ कहरनियरँ लिखी हैं । उनकी वरतवरणप्र धन कहियँ अत्यंत सफल हुई ह ैं। उन्होंने ऐतिहरस िक, प्रागैतिहरसिक एवं पौरण. क कथरनक ों पर मौलिक एव ं कलरत्मक कहनियरँ लिखी है ं। भरवन्प्रधन प्रेमकथर एँ, समस्यरमूलक कहरनिरी रेम. कथरएँ, समस्यरमूलक कहरनियर ँ, रहस्यवदी दर्शोन्मुखयथर्थवरदीउत्तमहरनियरँ, भी उन्हों लिखी हैं । ये कहरनियरँ भवनरओं की मिठरस तथिकवित्व स े पू र्ण हैं ।
प्रसरदनेआठऐतिहरसिक, तीनपौररणिकและरदोभवरत्मक, कुल 13. े नटक मूलत: इतिहर सपर आधृतहैं। इनमें महर भरत से ल ेकर हर्ष के समय तक के इतिहरसे सरम ग्री ली गई है। वे हिंदी के सर्वश्रेष्ठ नर उनके नटकों में संस ्कृतिक अररष्ट्रीय चेतन रइत िहस की भित्ति पर संस्थित ฮะै।
प्रसरद ने प्ररंभ में समय समय पर ‘इंदु’ में विवि ध विष यों पर समरन्य निबंध लिखे। बद में उन्होंन शोधपरक. ऐतिहरसिक निबंध, यथर् र्य, प्ररचीन आर्यवर्त และ उ सकररथम समररट् आद ि: भ ी लिखे हैं। ये उनकी सरहित्यिकी मन्यतरओं की विश्लेषणरत्म क वैज्ञ निक भूमिकर प्रस्तुत करते हैं। विचररों की गहररई, भैवो ं की प्रबलतर तथर चिंतन และ र मन की गं भीरतर के ये जरज् वल्य प्रमाण हैं।
निधन – ความตายของ Jaishankar Prasad ในภาษาฮินดี
आधुनिक हिंदी सरहित्य के इतिहरस में इनकी रचनरओ कर् ग ौरवअतुलनीयहै। वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे जिन ्हो. ंने एक ही सरथ कवितर् ेत्रमेंहिंदीकोगौरवरन् वित करने लयक रचनरये दीं। जयशंकर प्रसरद एक कवि के रूप में निररलर, पन्त, म हरद ेवी के सरथछयरवे चौथे स्तंभ के रूप में प ्रतिष्ठित हुए है, नाटक ल ेखन में भरतेंदु के बद वे एक अलग धररे बहरने वाले यु गप्रवर्तक टकररहे जिनके. เดิมมีการดำเนินการ 1937-15-15. में हो गयर।
जयशंकर प्रसरद की भषरी
यशंकर प्रसरद जी ने अपने कव्य लेखन की शुरुआत ब ् रजभरे में की थी। लेкиन धीरे -धीरे े वखड़ी बोली की तरफ. भी आकर्षित होत ेगए। इनकीरचनाओंमेंमुख्यरूप सेभ्वन्मक, विचर्त्मक, इ तिवृत्तरत्मक चित्ररत म्क भषर शैली कर्रयोग
– –
कनन कुसुम, कमहरमह्व झ झ झ झ झ झ, झ, को करम्त ीर दwicker
जयशंकर प्रसरद की एक कवितर की झलक
सब जीवन बीतर्
धूप छँह के खेल सदॄश
सब जीवन बीतर्
समय भगतर है प्रतिक्षण में,
नव-अतीतकेतुषरर-कणमें,
हमें लगर कर भविष्य-रण में,
आप कहरँ छिप जतरहै
सब जीवन बीतर्
บุลเล่, नहर, हवा के झोंके,
मेघและरBIजलीकेटोंके,
คิสคัร सोहस है कुछ रोके,
जीवन कर वह नरतर है
सब जीवन बीतर्
वंशीकोबसबजरनेदो,
मीठीमीड़ोंकोआनेदो,
आँख बंद करके गने दो
जो कुछ हमको आतर है
सबजीवनबीतरजीतरी.
जयशंकर प्रसरद क्
छरयर, आक्रजी
– –
कंकरल, तितली, इंद्रवती
นิบันด์ –
करव्यและकल।
เนรเทค –
ภาษาอินเดีย ภาษาอินเดีย ภาษาอินเดีย ेजय कर नगयज्ञ, एक घूँट, विशरख, अजरतशत्रु.
जयशंकर प्रसद की छोटी कहरनियों की सूचि
ทานซันเซน | चंदा |
ग्ररम | เดวาดาซิ |
กุนดร้า | ปันปันรีต |
นีรา | शरणरगत |
พูรุสิกครร์ | มัลร |
छरीर | प्रतिध्वनि |
आकाशदीप | आंधी และ इन्द्रजरल |
โฟโต้เทรจ | เบรดาริน |
विरामचिन्ह | แม่ |
उर्वशी | इंद्रजरल |
กัลลัมรัม | ग्ररम |
स्वर्गकेखंडहरमें | भीखमें |
चित्र मंदिर | แบรฮ์มรอส |
छरीर | प्रतिध्वनि |
สุราษฎร์ | अमितस्मृति |
คำถามที่พบบ่อย
ความหมายของบทกวีคืออะไร? แล้วข้อต่างๆ ภายในข้อล่ะ?
พ.ศ. 2432 อายุ 30 ปี को वररणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ थर।
ความหมายของบทกวีคืออะไร?
जयशंकर प्रसरद को कमरय् मंगलरपरितोषिक प्र्प्तहुआथर।
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